Saturday, December 26, 2020

माटी री आ काया...

In 2020’s pandemic (as if I’m going to witness more, well who knows?), I was introduced to many new things like working from home w/o knowing when I would start working from office again, taking care of a toddler full-time, joining zoom meetings for anything and everything, learning art online, attending fitness classes online, etc. Among those new things there was also a bhajan written by Muni Roopchandraji. In some of those depressing days of 2020, I and my family have listened to this bhajan in a loop. As the text version of the bhajan is not available anywhere on the internet (or so I think as of now), I thought of writing it down myself:

माटी री आ काया आखिर माटी मैं मिल जावे है
क्यां रो गर्व करे रे मनवा क्यां पर तू इतरावे है
माटी री आ काया आखिर माटी मैं मिल जावे है
क्यां रो गर्व करे रे मनवा क्यां पर तू इतरावे है

जीण तन न मीठा माल खुवा तू निश दिन पाले पोसे है
जीण तन न मीठा माल खुवा तू निश दिन पाले पोसे है
अपणे एक पेट री आग बुझावण कित्ता रा मन रोसे है
अपणे एक पेट री आग बुझावण कित्ता रा मन रोसे है
लेकिन गटका खायोड़ा ने एक दिन भटका आवे है
क्यां रो गर्व करे रे मनवा क्यां पर तू इतरावे है
लेकिन गटका खायोड़ा ने एक दिन भटका आवे है
क्यां रो गर्व करे रे मनवा क्यां पर तू इतरावे है

आ सांसाँरो विश्वास नहीं, कद आती आती रुक जावे
आ सांसाँरो विश्वास नहीं, कद आती आती रुक जावे
जीवन मैं झुकणो नहीं जाण्यो वो जम रे आगे झुक जावे
जीवन मैं झुकणो नहीं जाण्यो वो जम रे आगे झुक जावे
एक कदम तो उठग्यो दूजो कुण जाने उठ पावे है
क्यां रो गर्व करे रे मनवा क्यां पर तू इतरावे है
एक कदम तो उठग्यो दूजो कुण जाने उठ पावे है
क्यां रो गर्व करे रे मनवा क्यां पर तू इतरावे है

ओ तो चार दिनां रो चानणियो सुण फेर अँधेरी रातां है
ओ तो चार दिनां रो चानणियो सुण फेर अँधेरी रातां है
थारी टपरी सारी चूवे है ऐ सावण री बरसातां है
थारी टपरी सारी चूवे है ऐ सावण री बरसातां है
थोडे जीणे रे खातिर क्यूँ भारी पाप कमावे है
क्यां रो गर्व करे रे मनवा क्यां पर तू इतरावे है
थोडे जीणे रे खातिर क्यूँ भारी पाप कमावे है
क्यां रो गर्व करे रे मनवा क्यां पर तू इतरावे है

जो बीत गई सो बात गई अब पाछल खेती कर ले तू
जो बीत गई सो बात गई अब पाछल खेती कर ले तू
मुनि “रूप” कहे सद्गुण मोत्यां स्यूँ खाली झोली भर ले तू
मुनि “रूप” कहे सद्गुण मोत्यां स्यूँ खाली झोली भर ले तू
जो जागे है सो पावे है जो सोवे है पछतावे है
क्यां रो गर्व करे रे मनवा क्यां पर तू इतरावे है
जो जागे है सो पावे है जो सोवे है पछतावे है
क्यां रो गर्व करे रे मनवा क्यां पर तू इतरावे है

माटी री आ काया आखिर माटी मैं मिल जावे है
क्यां रो गर्व करे रे मनवा क्यां पर तू इतरावे है
माटी री आ काया आखिर माटी मैं मिल जावे है
क्यां रो गर्व करे रे मनवा क्यां पर तू इतरावे है

For any feedback/suggestions related to this bhajan, please get in touch with me.

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